किसी दूसरे के बारे में लिखना या तारीफ़ करना हो तो अच्छा लगता है। लेकिन बात जब अपने बारे में लिखने की हो तो संकोच होता है। क्योंकि आत्म प्रवंचना करना ठीक मालूम नही होता। फिर भी अब जब ब्लॉग की यही परम्परा है तो यही सही।
कहाँ से शुरू करू
Saturday, August 30, 2008
Saturday, August 23, 2008
कृष्ण दीवानी..............
तेरी बातें बड़ी सुहानी
कभी सुनी न येसी कहानी
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
द्वारिका में राधा गोपी
घट घट घूमे वो तो जोगी
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
श्याम से उसने लगन लगाई
सब के में जोत जगाई
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
धडकन बोले गिरधर- गिरधर
मन में समय कितने मंजर
कभी सुनी न येसी कहानी
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
द्वारिका में राधा गोपी
घट घट घूमे वो तो जोगी
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
श्याम से उसने लगन लगाई
सब के में जोत जगाई
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
धडकन बोले गिरधर- गिरधर
मन में समय कितने मंजर
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
ऐसी भक्ति, ऐसी पूजा
देखा नही है कोई दूजा
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
जप कर तेरे नाम की माला
रास का हाला विश का प्याला
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
दर्शन दर्शन अँखियाँ तरसे
गिरधर तेरी मेहर बरसे
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी!
Thursday, August 21, 2008
अमरनाथ
Thursday, August 14, 2008
bapu
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