Wednesday, October 15, 2008

याद

संवेदनाओं के साथियों से संबल .मिला। छे महीने की एक बहन के इन्तेकाल के बाद मेरा जन्म हुआ .इधर १९७१ में भाररत पाक में युद्ध के बाद में इस दुनिय में आया तो इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है k युद्ध क आल में लोग इस बात का ज़्यादा ध्यान रखते हैं क क इस तरफ़ के कितने लोग मारे गए .इस काल में पैदा होने वालों की गिनती नही के e जाती और ऐसे माहोल में पैदा होने वाल ऐ बछ ऐ के जन्म पर वैसा माहोल नही होता ,जैसा आम दिनों में पैदा होने वाले बच्चो के जन्म पर होता है .और में khhamoshi से इस भरी दुनिया में आ गे आ .बचपन में में बहुत इन्त्रोवेर्ट था ।संकोच और झिझक मेरे साथी थे .मुझ से बड़े बी है इश्रकुल इस्लाम माहिर हम बी है बहनo में सबसे बड़े हैं .वो पैलोठी की औलाद हैं ।वो बहुत ख्हूब्सूरत .इन्तेल्लिगेंतौर सभी के लाडले .जो भी देखता बस देखता ही रह जाता .तब मेरे पास पेर्सोनालिटी के लेवल पर दूसरो को इम्प्रेस करने के नाम पर कुछ नही था और वो अपने इस आभा मंडल पर ख्हूब इतराते थे और मुझे बिल्कुल फोकस नही होने देते थे । में मौन की ऊँगली पकड़ कर बड़ा हुआ .इससे कभी कभी फ्रुस्टेशन होता था .मुझे चुप्पा घुन्ना नाम दिया गय्या .मेरी दादी ने मेरे इस मौन को तोडा .उन्हें हम अम्मा कहते थे .वो मुज्झे हमेशा एपी ने पास और साथ रखती थीं .ज़िन्दगी इन दो लफ्जों के इर्द gइर्द गर्दिश करती है ।कुच्छ लोग जो हमें पास मालूम होते हेई वो साथ नही हूते और जो साथ होते हैं , वो पास नही होते ।अम्मा मेरे पास भी थीं और मेरे साथ भी ।पास और साथ होने और रहने का यह ख्हुश्नुमा एहसास एक दिन अचानक का अफूर हो गया ।अम्मा 21 जनुअरी 19२१ को लकवा होने पेरिस दुनिया से रुख्सत हो गैइन ।इन्तेराच्शन का एक सिलसिला टूट गया ...क हो गए dहो ओपी के ज़ल्ज़लेजिंदगी बे वफ़ा हो गैउनकी डेथ के बाद दादा जी भी ख्हमोश रहने लगे थे .मेरे अब्बू जी अपनी वाल्दा से अज हद मोहब्बत करते थे ,लेकिन अपनी मोहब्बत का इज़हार नही का रते थे .अब्बू उन के सब से बड़े बेटे थे और उन से बड़ी एक बहन दो छोटे भाई और और एक सब से छोटी बहन ,जिस पर अब्बू जी बहुत जान छिड़कते थे .घर में पूरी तरह ट्रडिशनल और धर्मिक माहोल था . ख्हंदान की एक कड़ी टूट गई थी .नींद हम से जुदा हो गई . एक ग़म कुदरत से मिला और एक दुनिया से . उनकी जब डेथ हुई में 10-11 साल का था .आखरी सफर में न तो किसी को ये ख्हयल आया क वो जी से इतनी ज़्यादा मोहाब्बाटी karti थीं uसे म्याt में साथ ले जाया जाए या कम से कम कन्धा ही लागवा दिया जाता . में ने इस बात ka ज़िक्र bही किया लेकिन मातम के माहौल में इस ख्हमोशी को पहचानता कौन .उस वक्त में छोठी क्लास में था .में बहुत ज़्यादा दिसतुरब हो गया . यहाँ से ज़िन्दगी का पहला to शुरउ हुवा ।
September 17, 2008 2:46 PM